खुफिया ठिकाना: एक हॉरर कहानी
**खुफिया ठिकाना: एक हॉरर कहानी**
एक बार की बात है, एक छोटे से गांव में एक पुराना किला था, जिसे सभी ने भूतिया मान लिया था। गांव वाले कहते थे कि किले के अंदर एक खुफिया ठिकाना है, जहां पर एक खतरनाक आत्मा रहती है। जो भी उस ठिकाने में जाने की हिम्मत करता, उसकी किस्मत बदल जाती थी—या तो वह गायब हो जाता, या पागल हो जाता।
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एक दिन, तीन दोस्त—राघव, प्रिया, और सौरभ—ने तय किया कि वे इस खुफिया ठिकाने का सच जानेंगे। राघव हमेशा साहसिकता के लिए जाना जाता था, जबकि प्रिया और सौरभ थोड़े डरपोक थे। लेकिन राघव की बातों ने उन्हें प्रेरित किया और वे किले की ओर चल पड़े।
जब वे किले में पहुंचे, तो वहां अंधेरा और सन्नाटा था। किले की दीवारें दरक गई थीं और अंदर घुसते ही एक ठंडी हवा ने उन्हें घेर लिया। जैसे-जैसे वे अंदर बढ़े, एक डरावनी भावना उनके दिलों में घर करने लगी।
आखिरकार, उन्हें एक पुरानी सीढ़ी मिली, जो नीचे की ओर जाती थी। सभी ने एक-दूसरे को देखा और फिर नीचे जाने का फैसला किया। सीढ़ियों के अंत में, उन्हें एक दरवाजा मिला, जो आधा खुला था। अंदर जाने पर उन्होंने देखा कि कमरा पुरानी किताबों और धूल में भरा हुआ था।
सौरभ ने एक किताब उठाई और जैसे ही उसने उसे खोला, एक जोर की आवाज गूंज उठी, "क्यों आए हो तुम मेरे खुफिया ठिकाने में?" कमरे में ठंडक और डरावनी सन्नाटा फैल गया। अचानक, एक धुंधली आकृति सामने आई। उसकी आंखें चमक रही थीं, और वह खौफनाक दिख रही थी।
आत्मा ने कहा, "तुम्हें मेरी शर्तें माननी होंगी। अगर तुम जीना चाहते हो, तो रात को इस किले में अकेले रहना होगा। अगर तुम डर गए, तो तुम्हारी आत्मा मेरी होगी।"
राघव ने साहस दिखाते हुए चुनौती स्वीकार कर ली। प्रिया और सौरभ ने उसे रोकने की कोशिश की, लेकिन राघव ने कहा, "मैं कर सकता हूं।" रात के अंधेरे में, राघव ने अपने दोस्तों को बाहर इंतजार करने को कहा और खुद कमरे में रुक गया।
जैसे-जैसे रात बढ़ी, उसे अजीब आवाजें सुनाई देने लगीं। दीवारों से फुसफुसाने की आवाजें, छाया में हिलती आकृतियां, और ठंडी हवा ने उसे बुरी तरह डराया। राघव ने खुद को मनाया कि यह सब उसकी कल्पना है, लेकिन डर लगातार बढ़ता गया।
तभी, अचानक कमरे में एक दहशत भरी आवाज गूंजी, "तुम डर गए हो, राघव!" राघव ने अपनी आंखें बंद कर लीं और गहरी सांस ली। लेकिन जब उसने आंखें खोलीं, तो उसने देखा कि वह अकेला है। प्रिया और सौरभ का कहीं कोई नामोनिशान नहीं था।
उसने डरते हुए चिल्लाया, "प्रिया! सौरभ!" लेकिन कोई जवाब नहीं आया। वह समझ गया कि उसने आत्मा को नाराज कर दिया है। उसे एहसास हुआ कि अब उसे खुद को बचाना होगा।
जैसे ही वह दरवाजे की ओर बढ़ा, अचानक एक ठंडी लहर ने उसे घेर लिया। उसने देखा कि आत्मा उसकी ओर बढ़ रही है। राघव ने अपनी पूरी ताकत लगाकर दरवाजा खोला और बाहर भागा।
जब वह बाहर आया, तो उसने पाया कि प्रिया और सौरभ वहां खड़े हैं, लेकिन उनकी आंखों में डर था। वे किले से भाग निकले। उस रात के बाद, उन्होंने कभी भी उस किले के पास जाने की हिम्मत नहीं की।
इस घटना ने राघव को सिखाया कि कुछ खुफिया ठिकाने ऐसे होते हैं, जिन्हें छेड़ना नहीं चाहिए। और किला हमेशा के लिए गांव के लिए एक डरावना रहस्य बना रहा।
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